१० दिसंबर २०१८, गुरूग्राम
गीता में वर्णित युद्ध वास्तव में मानव के अन्दर चलने वाले द्वन्द का प्रतीक है। उक्त विचार श्रीकृष्णा आश्रम हरिद्वार से पधारे स्वामी हरि ओम् गिरी जी महाराज ने ब्रह्माकुमारीज़ के ओम् शान्ति रिट्रीट सेन्टर में व्यक्त किये। तीन दिवसीय अखिल भारतीय गीता महास66ोलन में बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि गीता हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। गीता मानव को उसके सत्य स्वरूप का बोध कराती है।
सिद्धपीठ श्री मंगला काली मंदिर, हरिद्वार से आये स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने संबोधन में कहा कि गीता का उद्देश्य हमें आध्यात्म के शिखर पर ले जाना है। उन्होंने कहा कि गीता एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। उन्होंने कहा कि आज के भौतिक जगत में मानव उसे ही सत्य मानता है जो उसे दिखाई देता है। जो दिखाई नहीं देता उसे स्वीकार नहीं करता। लेकिन गीता हमें उस सत्य से अवगत कराती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ही सत्य है और सत्य ही शिव है।
ऋषिकेश से पधारे स्वामी श्री ईश्वरदास जी महाराज ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज़ संस्था वास्तव में गीता को जीवन में उतारने का एक बेहतर कार्य कर रही है।
इस अवसर पर विशेष रूप से ब्रह्माकुमारीज़ की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी जी ने अपने आर्शीवचन में कहा कि गीता पढऩा और सुनना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन गीता को जीवन में लाना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जब हम अपने जीवन को गुणों से भर देते हैं तो हमारा जीवन ही गीता बन जाता है। १०३ वर्षीय दादी जी ने कहा कि गीता की सभी शिक्षाओं को मैंने सम्पूर्ण रूप से अपने जीवन में उतारा है। उन्होंने कहा कि मैं गीता नहीं पढ़ती लेकिन मेरे जीवन से सभी को गीता नज़र आती है।
ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने वक्तव्य से सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आध्यात्मिक सत्ता ही सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक सत्ता के कारण ही आज तक भारत विश्व गुरू कहलाता है। भारत देवभूमि है लेकिन आज उन देवी मूल्यों का ह्रास होने के कारण हम अपनी उस महान संस्कृति को भूल चुके हैं। आध्यात्मिक श1ित के आधार से हम उन मूल्यों को जीवन में धारण कर महान देवी संस्कृति की स्थापना कर सकते हैं।
संस्था के अतिरिक्त महासचिव बी.के. बृजमोहन ने गीता महासम्मेलन के महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा कि गीताज्ञान की वास्तविकता को लोगों के सामने लाना ही हमारा उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि गीताज्ञान से ही भारत में आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना हुई थी। लेकिन आज हम देवी संस्कृति को भूलकर अपने को हिन्दू कहलाते हैं। उन्होंने कहा कि गीताज्ञान परमात्मा ने किसी हिंसा के लिए नहीं बल्कि श्रेष्ठ धर्म की स्थापना के लिए दिया। और धर्म का मूल तो अहिंसा है।
माउन्ट आबू से पधारी बी.के.उषा ने कहा कि किसी भी शरीरधारी को परमात्मा नहीं कह सकते। परमात्मा को हम सत्य अथवा अविनाशी कहते हैं जबकि शरीर तो विनाशी है। इसलिए गीता का ज्ञान स्वयं परमात्मा शिव ने दिया। शिव को ही हम सत्यम शिवम सुन्दरम कहते हैं।
कार्यक्रम में शिवयोगी धाम हरिद्वार से स्वामी शिव योगी जी महाराज, कुरूक्षेत्र से डा. एस.एम.मिश्रा, हैदराबाद से स्वामी गोपाल कृष्णानंद जी, जस्टिस वी. ईश्वरैया, बी.के.त्रीनाथ, डा. पुष्पा पाण्डे, बी.के. वीना आदि अनेक विद्वान व1ताओं ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन बी.के.मनोरमा ने किया।